प्रयागराज :-13 साल की नाबालिग लड़की को जूना अखाड़े द्वारा दीक्षा दिए जाने के मामले ने विवाद को जन्म दे दिया है।

प्रयागराज में 13 साल की नाबालिग लड़की को जूना अखाड़े द्वारा दीक्षा दिए जाने के मामले ने विवाद को जन्म दे दिया है। अखाड़े ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए दीक्षा से जुड़े महंत और नाबालिग को निष्कासित कर दिया है।

विवाद के मुख्य बिंदु:

  1. नाबालिग की दीक्षा पर सवाल: समाज और धार्मिक संगठनों ने नाबालिग लड़की को दीक्षा देने के फैसले पर आपत्ति जताई है। नाबालिग की उम्र और उसकी मानसिक परिपक्वता को लेकर सवाल उठाए गए हैं।
  2. अखाड़े का फैसला: जूना अखाड़े ने त्वरित कार्रवाई करते हुए संबंधित महंत को संगठन से निष्कासित कर दिया है और दीक्षा प्रक्रिया को रद्द कर दिया है।
  3. कानूनी पहलू: यह मामला कानूनी रूप से भी गंभीर माना जा रहा है क्योंकि नाबालिगों के अधिकार और सुरक्षा से संबंधित कानून इस तरह के मामलों में लागू होते हैं।
  4. धार्मिक संगठनों की प्रतिक्रिया: कई धार्मिक नेताओं और समाजसेवियों ने इस घटना को गलत बताया है और कहा है कि धर्म के नाम पर इस तरह के फैसले नाबालिगों के हित में नहीं हैं।

यह घटना समाज में धर्म और बाल अधिकारों के बीच संतुलन की आवश्यकता पर भी सवाल खड़े करती है। आगे की कार्रवाई और जांच पर ध्यान दिया जा रहा है।

प्रयागराज में 13 वर्षीय नाबालिग लड़की को साध्वी बनाने के विवाद में जूना अखाड़ा ने महंत कौशल गिरी को सात वर्षों के लिए निष्कासित कर दिया है, और लड़की को उसके परिवार के पास वापस भेज दिया गया है।

घटना का विवरण:

  • कन्यादान की घटना: आगरा के पेठा व्यापारी संदीप सिंह और उनकी पत्नी रीमा अपनी दो बेटियों, राखी और निक्की, के साथ महाकुंभ में शामिल हुए थे। उन्होंने अपनी 13 वर्षीय बेटी राखी को जूना अखाड़े के महंत कौशल गिरी को साध्वी बनने के लिए सौंप दिया, जहां उसका नामकरण ‘गौरी गिरी’ किया गया।
  • अखाड़े की प्रतिक्रिया: इस घटना की व्यापक आलोचना के बाद, जूना अखाड़े की आमसभा में महंत कौशल गिरी को सात वर्षों के लिए निष्कासित करने का निर्णय लिया गया। साथ ही, नाबालिग लड़की को उसके माता-पिता के पास वापस भेज दिया गया।
  • समाज की प्रतिक्रिया: संत समाज और अन्य धार्मिक संगठनों ने नाबालिग लड़की को साध्वी बनाने की प्रक्रिया की निंदा की है, इसे परंपराओं और नियमों के विरुद्ध बताया है।

यह घटना धार्मिक परंपराओं और बाल अधिकारों के बीच संतुलन की आवश्यकता को उजागर करती है, जिससे भविष्य में ऐसे मामलों में सतर्कता बरतने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

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