महाराष्ट्र में भाषा को लेकर जारी विवाद में एक बड़ा मोड़ आया है। राज्य सरकार द्वारा जारी किया गया वह विवादित शासकीय आदेश (GR), जिसमें पहली कक्षा से हिंदी भाषा को अनिवार्य रूप से पढ़ाने की बात कही गई थी, अब वापस ले लिया गया है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्वयं इस फैसले की घोषणा करते हुए कहा कि सरकार मराठी भाषा की अस्मिता और गौरव को सर्वोपरि मानती है।
क्या था विवाद?
हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने एक GR जारी कर पहली कक्षा से हिंदी भाषा को अनिवार्य करने की योजना बनाई थी। इस फैसले को लेकर राज्यभर में मराठी भाषा प्रेमियों, शिक्षकों, साहित्यकारों और कई राजनीतिक दलों ने विरोध दर्ज किया। इनका कहना था कि महाराष्ट्र की मातृभाषा मराठी है और मराठी विद्यार्थियों पर हिंदी थोपना उनकी भाषिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक अस्मिता पर आघात है।
विरोध और जनआंदोलन
इस GR के विरोध में महाराष्ट्र के कोने-कोने में जनआंदोलन खड़े हुए। मराठी भाषा संगठनों, शिक्षक संघों, साहित्यिक मंचों और आम जनता ने इसे मराठी अस्मिता के खिलाफ माना। सोशल मीडिया पर भी #मराठीबचवा जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। मराठी मानुष के स्वाभिमान की लड़ाई ने राजनीतिक रूप भी ले लिया और दबाव बढ़ने पर सरकार को पीछे हटना पड़ा।
मुख्यमंत्री की घोषणा
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में घोषणा करते हुए कहा:
“हमारी सरकार मराठी भाषा और संस्कृति को लेकर प्रतिबद्ध है। जो शासकीय निर्णय जनभावनाओं के विपरीत जाता है, उसे हम लागू नहीं करेंगे। पहली कक्षा से हिंदी अनिवार्य करने वाला GR वापस लिया जाता है।”
इस घोषणा के साथ ही महाराष्ट्र में एक नए उत्सव की नींव रखी गई – “मराठी विजय दिवस”, जो अब हर साल 5 जुलाई को मनाया जाएगा।
“मराठी विजय दिवस” का महत्व
5 जुलाई 2025 को पहली बार “मराठी विजय दिवस” मनाया जाएगा, जो इस निर्णय वापसी की तारीख है। यह दिन अब मराठी अस्मिता की प्रतीकात्मक जीत के रूप में मनाया जाएगा। कई मराठी संस्थाएं, स्कूल, और सामाजिक संगठन इस दिन विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करने की योजना बना रहे हैं।
निष्कर्ष
यह घटना इस बात का प्रमाण है कि जब जनता एकजुट होकर अपनी संस्कृति और भाषा के लिए खड़ी होती है, तो सरकार को भी अपने फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ता है। हिंदी जैसी राष्ट्रभाषा का सम्मान अपनी जगह है, लेकिन राज्यों की भाषाओं की गरिमा बनाए रखना भी उतना ही जरूरी है। इस जीत के साथ मराठी भाषा प्रेमियों ने यह साबित कर दिया कि महाराष्ट्र में मराठी ही सर्वोपरि रहेगी।
ज़रूर! नीचे विस्तार से बताया गया है कि इस निर्णय के सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षणिक स्तर पर क्या मायने हैं, और यह क्यों मराठी अस्मिता की ऐतिहासिक जीत मानी जा रही है:
🔴 पृष्ठभूमि – GR का मूल मुद्दा क्या था?
कुछ सप्ताह पहले महाराष्ट्र शिक्षा विभाग ने एक शासकीय निर्णय (Government Resolution – GR) जारी किया था, जिसमें पहली कक्षा से हिंदी भाषा को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाना जरूरी बताया गया। इसका सीधा मतलब था कि चाहे बच्चा मराठी माध्यम से पढ़ रहा हो, उसे हिंदी भी अनिवार्य रूप से पढ़नी होगी।
इस GR का उद्देश सरकार की भाषा नीति के तहत छात्रों में राष्ट्रभाषा हिंदी का ज्ञान बढ़ाना बताया गया था। लेकिन इसका विरोध यह कहते हुए शुरू हुआ कि यह नीति महाराष्ट्र की मातृभाषा मराठी की अवहेलना है।
🔥 मराठी भाषा प्रेमियों का उग्र विरोध
GR लागू होते ही महाराष्ट्र भर में खासकर पुणे, कोल्हापुर, नासिक, सांगली, सतारा, ठाणे और मुंबई में जोरदार विरोध देखने को मिला:
मराठी साहित्य परिषद, अखिल भारतीय मराठी नाट्य परिषद, और मराठी शिक्षक संघटन जैसे संगठनों ने कहा कि यह मराठी भाषा पर हिंदी थोपने का प्रयास है।
छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों ने मिलकर प्रदर्शन किए।
सोशल मीडिया पर #मराठीबचवा और #हिंदीGRवापस ट्रेंड हुआ।
प्रसिद्ध मराठी लेखक, कवि और बुद्धिजीवियों ने सरकार को खुले पत्र लिखे।
📣 राजनीतिक दबाव भी बढ़ा
राजनीतिक दलों – खासकर मनसे (MNS), शिवसेना (UBT), और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के नेताओं ने खुलकर इसका विरोध किया:
राज ठाकरे ने कहा कि मराठी माणूस को उसकी भाषा सिखाने की जरूरत नहीं।
उद्धव ठाकरे ने इसे “संविधान की आत्मा के खिलाफ” बताया।
विपक्षी दलों ने सरकार पर “हिंदी हितैषी एजेंडा” चलाने का आरोप लगाया।
🏛️ मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया और GR वापसी
जनता के बढ़ते आक्रोश और विरोध के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने तुरंत हस्तक्षेप करते हुए यह GR रद्द करने का निर्णय लिया। उनकी घोषणा के मुख्य बिंदु:
यह निर्णय जनभावनाओं का सम्मान करते हुए लिया गया।
महाराष्ट्र में मराठी भाषा की प्राथमिकता बनी रहेगी।
सभी शासकीय और अर्धशासकीय विद्यालयों में मराठी अनिवार्य बनी रहेगी।
हिंदी भाषा की पढ़ाई वैकल्पिक या जरूरत के अनुसार रहेगी।
📅 5 जुलाई: “मराठी विजय दिवस” क्यों?
5 जुलाई को यह GR औपचारिक रूप से वापस लिया गया, इसी को मराठी विजय दिवस के रूप में मनाया जाएगा:
यह दिन हर साल मराठी भाषा की रक्षा के रूप में याद किया जाएगा।
स्कूलों में विशेष भाषण, निबंध, सांस्कृतिक कार्यक्रम और मराठी साहित्य पाठ होंगे।
यह युवाओं को अपनी मातृभाषा पर गर्व करना सिखाएगा।
🎯 मराठी अस्मिता का संदेश
यह केवल एक सरकारी आदेश की वापसी नहीं, बल्कि मराठी भाषा, संस्कृति और अस्मिता की नैतिक जीत है। इससे यह स्पष्ट हो गया कि:
महाराष्ट्र में मराठी सर्वोपरि है और रहेगी।
मातृभाषा की रक्षा केवल सरकार नहीं, जनता की ज़िम्मेदारी भी है।
भारतीय संविधान भी प्रत्येक राज्य को उसकी भाषा और संस्कृति की रक्षा का अधिकार देता है।
मराठी भाषा को लेकर यह लड़ाई सिर्फ भाषाई नहीं थी, यह एक पहचान की लड़ाई थी। और इसमें जनता की जीत हुई है।
मराठी माणूस ने एक बार फिर साबित कर दिया है:
“मराठी अस्मिता जिवंत आहे!”