तेहरान: अमेरिकी प्रतिबंधों और बढ़ते आर्थिक दबाव के बीच ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई ने भारत के साथ आर्थिक संबंधों को मजबूत करने की जरूरत पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि ईरान को भारत जैसी उभरती आर्थिक शक्तियों के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिए ताकि अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के प्रभाव को कम किया जा सके।
क्यों भारत पर टिकी हैं खामेनेई की नजरें?
पिछले कुछ वर्षों में भारत और ईरान के बीच आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी बढ़ी है, खासकर चाबहार बंदरगाह को लेकर। यह प्रोजेक्ट न सिर्फ भारत के लिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच का महत्वपूर्ण रास्ता है, बल्कि ईरान के लिए भी प्रतिबंधों से बचने का एक जरिया बन सकता है। खामेनेई ने माना कि भारत के साथ संबंध मजबूत करने से ईरान को आर्थिक और राजनीतिक फायदा होगा। अमेरिकी टैरिफ का डर अमेरिका ने ईरान पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों को और सख्त कर दिया है, जिससे तेहरान की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा है। पेट्रोलियम निर्यात, बैंकिंग और शिपिंग सेक्टर में प्रतिबंधों के चलते ईरान को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
ऐसे में, खामेनेई का भारत की तरफ देखना स्वाभाविक है, क्योंकि भारत ने अमेरिकी दबाव के बावजूद ईरान से तेल आयात जारी रखा है। अमेरिकी दबाव के बीच ईरान को नए आर्थिक सहयोगियों की तलाश है, और भारत इस मामले में अहम भूमिका निभा सकता है। खामेनेई का यह बयान साफ संकेत देता है कि ईरान भारत के साथ रिश्ते मजबूत करने को प्राथमिकता दे रहा है। अगर दोनों देशों के बीच आर्थिक साझेदारी बढ़ती है, तो यह पूरे क्षेत्र के भू-राजनीतिक समीकरण को बदल सकता है। चाबहार बंदरगाह: दोनों देशों के लिए अहम भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह में भारी निवेश किया है, जिसे अफगानिस्तान और यूरेशिया तक व्यापार बढ़ाने के लिए अहम माना जाता है। इस प्रोजेक्ट से ईरान को भी करोड़ों डॉलर का राजस्व मिलने की उम्मीद है। खामेनेई चाहते हैं कि ईरान इस तरह के प्रोजेक्ट्स के जरिए भारत और अन्य देशों के साथ संबंध मजबूत करे।
ईरान-भारत संबंधों की गहराई: क्यों खामेनेई ने इस वक्त भारत को चुना? अमेरिकी प्रतिबंधों से जूझ रहे ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई का भारत के साथ आर्थिक संबंध मजबूत करने पर जोर देना कोई संयोग नहीं है। यह एक सोची-समझी रणनीति है, जिसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं: ऊर्जा सुरक्षा का सवाल भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है, जबकि ईरान दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातकों में से एक। अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने 2019 तक ईरान से तेल आयात जारी रखा था।
अगर अमेरिका-ईरान तनाव कम होता है, तो भारत फिर से ईरानी तेल खरीदना शुरू कर सकता है, जो ईरान की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी राहत होगी।चाबहार बंदरगाह: भारत-ईरान की जीत की रणनीति चाबहार बंदरगाह भारत के लिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच का सबसे महत्वपूर्ण रास्ता है। यह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह (चीन द्वारा विकसित) का प्रतिद्वंद्वी भी है। ईरान इस परियोजना से हर साल करोड़ों डॉलर कमा सकता है, जो उसकी अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में मदद करेगा अंतर्राष्ट्रीय समर्थन की जरूरत ईरान अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग महसूस कर रहा है।
भारत एक ऐसा देश है जो पश्चिम और रूस-चीन के बीच संतुलन बनाकर चलता है। यदि भारत ईरान के साथ मजबूत संबंध बनाता है, तो ईरान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समर्थन मिल सकता है। रूस-चीन पर निर्भरता कम करने की कोशिश ईरान पिछले कुछ सालों में रूस और चीन पर आर्थिक रूप से निर्भर हो गया है। लेकिन इन दोनों देशों का अपना एजेंडा है, जो हमेशा ईरान के हितों के अनुकूल नहीं होता। भारत के साथ साझेदारी बढ़ाकर ईरान अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता बनाए रखना चाहता है।
भारत-ईरान ऐतिहासिक संबंध भारत और ईरान के संबंध सदियों पुराने हैं, जो सांस्कृतिक और आर्थिक आदान-प्रदान पर आधारित हैं। दोनों देश अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता चाहते हैं। भारत में बड़ी शिया आबादी है, जो ईरान के साथ धार्मिक संबंध रखती है। भविष्य की राह: क्या हो सकता है आगे? यदि भारत और ईरान आर्थिक सहयोग बढ़ाते हैं, तो चाबहार बंदरगाह का विकास तेजी से हो सकता है। भारत ईरान में रेलवे, सड़क और ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश कर सकता है। अगर अमेरिका-ईरान संबंध सुधरते हैं, तो भारत फिर से ईरानी तेल खरीदना शुरू कर सकता है।
र्ईरान के लिए भारत एक विश्वसनीय और दीर्घकालिक साझेदार हो सकता है। खामेनेई का यह बयान दोनों देशों के बीच संबंधों को नई दिशा दे सकता है। अगर भारत सही रणनीति अपनाता है, तो वह ईरान के साथ मिलकर पूरे मध्य एशिया क्षेत्र में अपनी आर्थिक और रणनीतिक पहुंच बढ़ा सकता है। क्या रूस-चीन की जगह भारत बनेगा ईरान का नया सहयोगी? अब तक ईरान ने आर्थिक मोर्चे पर रूस और चीन का सहारा लिया है, लेकिन इन देशों के अपने हित हैं। ऐसे में, भारत एक विश्वसनीय साझेदार के तौर पर उभर सकता है। भारत की तटस्थ विदेश नीति और ईरान के साथ ऐतिहासिक संबंधों को देखते हुए, दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ने की संभावना है।
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