
सेमीकंडक्टर चिप्स आधुनिक तकनीक की रीढ़ माने जाते हैं। स्मार्टफोन, कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और ऑटोमोबाइल से लेकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) तक, सभी सेमीकंडक्टर चिप्स पर निर्भर करते हैं। भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग तेजी से उभर रहा है और सरकार इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए विभिन्न कदम उठा रही है।
भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण (Semiconductor Manufacturing) हाल के वर्षों में तेजी से विकास कर रहा है। सरकार और निजी कंपनियां इस क्षेत्र में निवेश कर रही हैं ताकि भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स और चिप निर्माण में आत्मनिर्भर बनाया जा सके। भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग की स्थिति भारत में अभी तक सेमीकंडक्टर चिप निर्माण के लिए बड़े स्तर पर विनिर्माण इकाइयाँ नहीं थीं। लेकिन हाल के वर्षों में, सरकार और निजी कंपनियाँ मिलकर इस क्षेत्र में निवेश बढ़ा रही हैं। भारत की सेमीकंडक्टर नीति और ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत कई नई योजनाएँ बनाई गई हैं।
- सेमीकंडक्टर मिशन – भारत सरकार ने 76,000 करोड़ रुपये की योजना के तहत सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले फैब्रिकेशन इकाइयों को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है।
- PLI (Production Linked Incentive) योजना – इस योजना के तहत सेमीकंडक्टर कंपनियों को आर्थिक सहायता दी जा रही है।
- Vedanta-Foxconn फैब – वेदांता और फॉक्सकॉन ने गुजरात में सेमीकंडक्टर चिप निर्माण के लिए बड़े निवेश की घोषणा की है।
- ISMC और Tata Electronics – ये कंपनियाँ भी भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण में दिलचस्पी दिखा रही हैं।भारत सेमीकंडक्टर निर्माण में तेजी से आगे बढ़ रहा है, और आने वाले वर्षों में यह एक वैश्विक सेमीकंडक्टर हब बन सकता है।
भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण के लाभ
भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग के विकास के लिए सरकार और निजी कंपनियों का संयुक्त प्रयास आवश्यक है। यदि भारत अपने सेमीकंडक्टर उत्पादन को सफलतापूर्वक विकसित कर लेता है, तो यह डिजिटल युग में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। यह न केवल भारत के लिए बल्कि वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला के लिए भी एक महत्वपूर्ण परिवर्तन साबित हो सकता है। आत्मनिर्भर भारत – सेमीकंडक्टर चिप्स के घरेलू उत्पादन से भारत आयात पर निर्भरता कम कर सकता है। रोज़गार के नए अवसर – इस क्षेत्र में लाखों नौकरियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। तकनीकी प्रगति – भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स और AI जैसे क्षेत्रों में तेजी से विकास हो सकता है। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भागीदारी – भारत वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला का महत्वपूर्ण हिस्सा बन सकता है।
उच्च प्रारंभिक निवेश – सेमीकंडक्टर फैब इकाइयाँ स्थापित करने के लिए बहुत बड़े निवेश की आवश्यकता होती है। तकनीकी विशेषज्ञता की कमी – भारत में अभी भी सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए आवश्यक उच्च तकनीकी कौशल की कमी है। बिजली और जल आपूर्ति – सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए स्थिर बिजली और जल आपूर्ति आवश्यक है। वैश्विक प्रतिस्पर्धा – अमेरिका, ताइवान, दक्षिण कोरिया और चीन इस क्षेत्र में पहले से ही बहुत आगे हैं।
भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए भारत सरकार ने कई पहलें की हैं, जैसे कि सेमीकंडक्टर मिशन, सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम, और अंतरराष्ट्रीय समझौता ज्ञापन.
भारत सेमीकंडक्टर मिशन (आईएसएम)
- यह मिशन, सेमीकंडक्टर इंजीनियरिंग, डिजाइन, विनिर्माण, और अनुसंधान के लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचा बनाने का काम करता है.
- यह मिशन, सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करने का काम करता है.
- इस मिशन के तहत, फैब्स और डिस्प्ले इकाइयों के लिए परियोजना लागत का 50% राजकोषीय प्रोत्साहन दिया जाता है.
सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम
- इस कार्यक्रम के तहत, विनिर्माण और अनुसंधान एवं विकास में तेज़ी लाने के लिए 76,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे.
अंतरराष्ट्रीय समझौता ज्ञापन
- आपूर्ति श्रृंखलाओं और पारिस्थितिकी तंत्र सहयोग को मज़बूत करने के लिए भारत ने यूरोपीय आयोग और जापान के साथ समझौता ज्ञापन किया है.
भारत का लक्ष्य
- भारत का लक्ष्य, साल 2030 तक वैश्विक सेमीकंडक्टर बाज़ार में 10% हिस्सेदारी हासिल करना है.
- भारत, सेमीकंडक्टर उत्पादन के लिए वैश्विक केंद्र बनना चाहता है.
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