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भारत और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं

अभी की वैश्विक आर्थिक स्थिति:-

  1. भारत और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं: भारत जैसे विकासशील देश उच्च विकास दर बनाए हुए हैं। डिजिटल भुगतान, स्टार्टअप्स, और बुनियादी ढांचा विकास के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं।
  2. अमेरिकी फेडरल रिजर्व और ब्याज दरें: अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि की है। इससे वैश्विक बाजारों में अस्थिरता देखी जा रही है। उच्च ब्याज दरें निवेश को महंगा बनाती हैं, जिससे आर्थिक विकास की गति धीमी हो सकती है।
  3. मुद्रास्फीति और मुद्रा अवमूल्यन: कई देशों में उच्च मुद्रास्फीति के कारण मुद्रा अवमूल्यन हो रहा है। इससे निर्यात और आयात पर प्रभाव पड़ता है, खासकर उन देशों में जो ऊर्जा आयात पर निर्भर हैं।
  4. यूरोप में ऊर्जा संकट: रूस-यूक्रेन संघर्ष के चलते यूरोप में ऊर्जा संकट गहरा गया है। गैस और तेल की आपूर्ति में कमी के कारण ऊर्जा कीमतों में वृद्धि हो रही है, जिससे मुद्रास्फीति और औद्योगिक उत्पादन प्रभावित हो रहे हैं।
  5. चीन की अर्थव्यवस्था: चीन की अर्थव्यवस्था में कुछ धीमापन देखा गया है, जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और व्यापार पर प्रभाव डाल रहा है। चीन की रियल एस्टेट क्षेत्र में भी चुनौतियाँ हैं, जो उनके आर्थिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही हैं।
  6. वैश्विक व्यापार में बदलाव: संरक्षणवादी नीतियों और व्यापार युद्धों के चलते अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अस्थिरता बनी हुई है। इससे आपूर्ति श्रृंखला और व्यापारिक संबंधों पर प्रभाव पड़ रहा है।

अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने हाल ही में अपनी मौद्रिक नीति में ब्याज दरों को 4.25% से 4.50% के बीच अपरिवर्तित रखा है। यह निर्णय बाजार की उम्मीदों के अनुरूप था। फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों में बदलाव का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, और अन्य केंद्रीय बैंक, जैसे भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), अपनी नीतियों में इन परिवर्तनों को ध्यान में रखते हैं। हालांकि, प्रत्येक केंद्रीय बैंक अपने देश की आर्थिक परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लेता है। इससे पहले, फेडरल रिजर्व ने दिसंबर 2024 में ब्याज दरों में 0.25% की कटौती की थी, जिससे दरें 4.50% से घटकर 4.25% हो गई थीं।

उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के संदर्भ में, वर्ष 2000 के बाद से इनका वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान 25% से बढ़कर लगभग 45% हो गया है। भारत, चीन, और ब्राजील जैसी अर्थव्यवस्थाओं ने इस वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत, एक प्रमुख उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में, वैश्विक आर्थिक मंच पर अपनी स्थिति को निरंतर मजबूत कर रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों को तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है: प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीयक क्षेत्र और तृतीयक क्षेत्र। इनमें से प्रत्येक क्षेत्र अर्थव्यवस्था में अलग-अलग योगदान के साथ अलग-अलग आर्थिक गतिविधियों से बना है।

विश्व बैंक की जनवरी 2025 की ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स (GEP) रिपोर्ट के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2025-26 और 2026-27 में 6.7% की स्थिर वृद्धि दर से बढ़ने की उम्मीद है, जो वैश्विक औसत 2.7% से कहीं अधिक है। यह लगातार तीसरी बार था जब फेड ने ब्याज दरों में कटौती की थी। फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल ने कहा कि अर्थव्यवस्था समग्र रूप से मजबूत है, और श्रम बाजार की स्थिति ठोस बनी हुई है। इसे उभरती अर्थव्यवस्था इसलिए कहा जाता है क्योंकि वित्तीय और विनियामक अवसंरचना विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कम परिपक्व है ।

महंगाई दर 2% के दीर्घकालिक लक्ष्य के करीब पहुंच गई है, हालांकि यह अभी भी कुछ हद तक ऊंची बनी हुई है। भारत की इस प्रगति के पीछे सरकार की दूरदर्शी नीतियाँ, डिजिटल परिवर्तन, और समावेशी विकास के प्रति प्रतिबद्धता प्रमुख कारक हैं। इन पहलों के माध्यम से, भारत न केवल अपनी आंतरिक अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ कर रहा है, बल्कि वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

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