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“जब खेत उजड़ गए और क्लेम भी छूट गया: महाराष्ट्र का फसल बीमा संकट”

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में फसल बीमा योजना किसानों के लिए सुरक्षा कवच की तरह होती है। यह योजना प्राकृतिक आपदाओं, कीट प्रकोप, अतिवृष्टि, सूखे आदि से फसल को हुए नुकसान की भरपाई के लिए एक आशा की किरण मानी जाती है। लेकिन हाल के दिनों में एक चिंताजनक तथ्य सामने आया है — कई किसान अब फसल बीमा क्लेम ही नहीं कर रहे हैं, जबकि नुकसान हुआ है।

इस समस्या की तह में जाने पर यह बात सामने आई है कि ‘ट्रिगर मैकेनिज़्म’ (Trigger Mechanism) को हटाए जाने से यह स्थिति उत्पन्न हुई है। ट्रिगर हटने के बाद न केवल बीमा की प्रक्रिया जटिल हो गई है, बल्कि किसानों का भरोसा भी इस योजना से उठता जा रहा है। आइए विस्तार से समझते हैं कि आखिर ‘ट्रिगर’ क्या था, इसे हटाने से क्या असर पड़ा, और क्यों अब किसान स्वयं क्लेम करने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं?

🔍 ‘ट्रिगर मैकेनिज़्म’ क्या है?
फसल बीमा योजना के तहत ‘ट्रिगर’ का मतलब है — पूर्व निर्धारित नुकसान की स्थिति पर स्वत: क्लेम प्रोसेस शुरू होना।

उदाहरण के लिए, अगर किसी जिले में औसत से 50% कम बारिश होती है, या किसी सर्वेक्षण में यह दर्ज होता है कि 70% फसल बर्बाद हो गई है, तो यह अपने आप ‘ट्रिगर’ माने जाते थे। इसके बाद बीमा कंपनी स्वत: क्लेम जारी करने की प्रक्रिया शुरू करती थी। किसानों को अलग से आवेदन करने की ज़रूरत नहीं होती थी।

❌ ट्रिगर हटाया गया, अब किसान को करना होता है ‘स्वयं क्लेम’
2023 से कई राज्यों में बीमा कंपनियों ने ट्रिगर आधारित प्रणाली को हटाकर “स्व-आधारित क्लेम” (Self-initiated claim) प्रक्रिया शुरू की है। इसका मतलब है कि अब किसान को स्वयं जाकर:

नुकसान का प्रमाण देना होगा फसल की तस्वीरें, ज़मीन का रिकॉर्ड, बोवाई और कटाई की तिथि, और पंचनामा देना होगा
बीमा पोर्टल या ऐप पर आवेदन करना होगा यह प्रक्रिया कई किसानों के लिए न केवल तकनीकी रूप से जटिल है, बल्कि सूचना के अभाव और डिजिटल साक्षरता की कमी के कारण भी चुनौतीपूर्ण बन गई है।

😔 किसान क्यों नहीं कर रहे क्लेम?
1. भ्रम और जानकारी की कमी
कई किसानों को अब तक यह समझ ही नहीं आया कि ट्रिगर हट गया है और अब उन्हें खुद क्लेम करना होगा। पहले जहां पंचायत स्तर पर सूचना मिल जाती थी, अब डिजिटलीकरण के नाम पर किसान अकेला पड़ गया है।

2. तकनीकी जटिलताएं
प्रक्रिया अब पूरी तरह ऑनलाइन है — फोटो अपलोड, जीपीएस टैगिंग, दस्तावेज स्कैन करना और सबमिट करना। ग्रामीण इलाकों में न तो नेटवर्क की स्थिति अच्छी है और न ही सभी किसानों के पास स्मार्टफोन या तकनीकी जानकारी है।

3. लागत और समय की बर्बादी
क्लेम प्रक्रिया में समय, पैसे और श्रम की ज़रूरत होती है। कई किसानों को यह लगता है कि वे इतना खर्च करके भी शायद ही क्लेम प्राप्त कर पाएंगे। वे इसे “नुकसान के बाद और नुकसान” की तरह देख रहे हैं।

4. भरोसे की कमी
पिछले कुछ वर्षों में कई किसानों ने समय पर क्लेम किया, लेकिन राशि या तो बहुत कम मिली या फिर समय पर नहीं मिली। इसका असर यह हुआ है कि अब वे क्लेम करना ही व्यर्थ मानते हैं।

5. स्थानीय सहायता की अनुपस्थिति
पहले पंचायत या कृषि अधिकारी बीमा क्लेम में सहायता करते थे। अब डिजिटल प्रणाली में यह स्थानीय सहायता न के बराबर हो गई है। किसान को अकेले ही सब कुछ करना पड़ रहा है।

📉 क्या कहती हैं आंकड़ें?
हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार:

महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में 2024 में कुल बीमित किसानों में से केवल 27% किसानों ने ही क्लेम किया, जबकि 65% को फसल नुकसान हुआ था।
मध्यप्रदेश और राजस्थान के कुछ जिलों में भी क्लेम की दर 30% से कम रही है। लगभग 40% किसान ऐसे हैं जिन्होंने जानबूझकर क्लेम नहीं किया, यह सोचकर कि मिलने वाली राशि मेहनत के लायक नहीं है।

🛠 सरकार और बीमा कंपनियों की भूमिका कृषि मंत्रालय और बीमा कंपनियों ने नई प्रणाली को पारदर्शी और डिजिटल बताया है, लेकिन जमीनी हकीकत अलग है।

जरूरी सुधार:
किसानों को स्थानीय भाषा में प्रशिक्षित किया जाए कि नई प्रणाली में क्लेम कैसे करें।

क्लेम के लिए ऑफलाइन विकल्प फिर से लाया जाए, ताकि तकनीकी समस्या न बने रुकावट।

ग्राम पंचायत स्तर पर ‘बीमा सहायक केंद्र’ खोले जाएं जो किसानों को आवेदन में मदद करें।

ट्रिगर आधारित क्लेम को आंशिक रूप से बहाल किया जाए, विशेषकर सूखा, बाढ़ या महामारी जैसे मामलों में।

✨ समाधान की दिशा में एक कदम
कुछ राज्यों ने स्थिति को समझते हुए राहत दी है:

महाराष्ट्र सरकार ने कुछ जिलों में क्लेम की समयसीमा बढ़ाई है।

कर्नाटक में ‘फार्म मित्र’ नामक सेवा शुरू की गई है जो बीमा, कृषि और मौसम संबंधित सहायता देती है।

केंद्र सरकार ने भी डिजिटल साक्षरता अभियान की योजना बनाई है ताकि किसान मोबाइल ऐप्स का सही उपयोग कर सकें।

✅ निष्कर्ष:
फसल बीमा योजना का उद्देश्य किसानों को सुरक्षित और आत्मनिर्भर बनाना है, लेकिन अगर प्रक्रिया ही किसान को भ्रमित और थका दे, तो यह योजना अपने मकसद से भटक जाती है।

‘ट्रिगर’ हटाने से पारदर्शिता तो बढ़ सकती है, लेकिन किसानों की भागीदारी और विश्वास घट गया है।

जरूरत इस बात की है कि तकनीकी सुधार के साथ-साथ मानवीय पहलू को भी समझा जाए। अगर किसानों को सरल, सुलभ और भरोसेमंद बीमा प्रणाली मिलेगी, तभी वे न केवल क्लेम करेंगे, बल्कि भविष्य में इस योजना को अपनाने के लिए भी प्रेरित होंगे।
🌱 किसान और नीति के बीच की आवाज़

क्या आपके गांव में भी किसान फसल बीमा क्लेम नहीं कर रहे?
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यहाँ महाराष्ट्र में फसल बीमा (PMFBY) क्लेम और ‘ट्रिगर’ से जुड़े हालिया हालात पर विस्तृत जानकारी दी जा रही है:

📌 महाराष्ट्र की स्थिति (Status as of July 2025)
⚠️ 1. ₹1 प्रीमियम योजना बंद, किसान रुचिहीन
राज्य सरकार ने मार्च 2023 में शुरू की गई ₹1 प्रीमियम योजना को सितंबर‑अप्रैल 2025 तक बढ़ाए जाने के बावजूद बंद कर दिया क्योंकि उसमें लगभग 5.9 लाख नकली आवेदन पाए गए थे
अब किसानों को कहानी आधारित (कुपन कैप) प्रीमियम देना होगा:

खारीफ: ~1.5%

रबी: ~2%

बागवानी: ~5%
इस बदलाव ने किसानों की भागीदारी में तेज गिरावट ला दी है

📉 2. आवेदन संख्या में भारी गिरावट
नागपुर डिवीजन में 10 जुलाई तक आवेदन 20,000 से ऊपर, जबकि पिछले साल इतने ही दिनों में 6.5 लाख थे।

अमरावती डिवीजन में आवेदन घटकर 85,000 से कम, जबकि पिछले साल 17 लाख से अधिक थे

कुल मिलाकर इस वर्ष आवेदन कुल आवेदन का 5% से भी कम रहे हैं
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⚙️ 3. नुकसान मापन: “ट्रिगर” हट गया, अब रीवेन्यू सर्कल पर आधारित माप
अब केवल क crop‑cutting experiment आधारित नुकसान की गिनती होती है: एक रेवेन्यू सर्कल में सिर्फ 12 गांवों से चयनित नमूने आधार पर नुकसान तय किया जाता है।

यदि इन गांवों में नुकसान नहीं मिला, तो पूरे सर्कल के क्लेम रिजेक्ट हो जाते हैं – जिससे अनेकों किसानों को नुकसान हुआ भी लेकिन क्लेम नहीं मिला
The Times of India
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🕒 4. प्रीमियम भुगतान में देरी → क्लेम भुगतान अटके
राज्य सरकार ₹1,015 करोड़ प्रीमियम अभी तक बीमा कंपनियों को नहीं चुकाई है, जिसके कारण क्लेम राशि किसानों को जारी नहीं की जा रही।

कृषि मंत्री ने आश्वासन दिया है कि अगले 8 दिनों में भुगतान होगा और योग्य किसानों को 15 दिनों में क्लेम मिलेगा

🛑 5. धोखाधड़ी रोकने की कार्रवाई
4.14 लाख से अधिक bogus applications को खारिज किया गया—यह PMFBY में अब तक सबसे अधिक संख्या
🧪 6. तकनीकी सुधार: सैटेलाइट आधारित नुकसान मापन
राज्य सरकार NDVI, EVI, NDWI जैसे उपग्रह‑आधारित संकेतकों का उपयोग कर फसल नुकसान का आकलन करने पर विचार कर रही है।

Vidarbha में कुछhailstorm प्रभावित क्षेत्रों में AI‑satellite आधारित नुकसान मापन और DigiClaim प्रणाली से तेजी से क्लेम भुगतान शुरू हो चुका है

📝 7. किसान हितार्थ नई योजना – Krishi Samruddhi Yojana
राज्य सरकार ने ₹5,000 करोड़ वार्षिक निवेश की घोषणा की है और इससे डायरेक्ट DBT आधारित सहायता देने की योजना बनाई है।

✅ संक्षेप में स्थिति
पहलू वर्तमान स्थिति
आवेदन संख्या इस साल भारी गिरावट (~95% कम)
ट्रिगर मैकेनिज्म हटाया गया, क्लेम केवल संपूर्ण रेवेन्यू सर्कल नुकसान पर आधारित
भुगतान अवरोध ₹1,015 करोड़ प्रीमियम बकाया, भुगतान प्रक्रिया में देरी
धोखाधड़ी रोकथाम सैकड़ों CSC ब्लॉक, किसानों को ब्लैकलिस्टिंग की नीति
तकनीकी सुधार NDVI/AI आधारित मापन और DigiClaim परीक्षण में शुरू
नई पहल Krishi Samruddhi Yojana: व्यापक कृषि सहायता योजना

महाराष्ट्र में ₹1 प्रीमियम योजना की बंदी और ट्रिगर मैकेनिज़्म हटने से किसानों की रुचि में भारी गिरावट आई है। नए प्रीमियम, जटिल मापन प्रक्रिया और भ्रष्‍टाचार की आशंका ने संभव क्लेमों को भी रोक दिया। हालांकि नई तकनीकी शुरुआत (satellite/AI) और Krishi Samruddhi जैसी योजनाएं एक सकारात्मक संकेत हैं, लेकिन किसानों को फिर से विश्वास दिलाने के लिए सरल, पारदर्शी एवं समय‑बद्ध क्लेम प्रक्रिया की आवश्यकता है।

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