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डेटा प्राइवेसी कानून और आम जनता की जागरूकता: क्या भारत तैयार है?

आज डिजिटल युग में हमारा हर कदम डेटा से जुड़ा है — सोशल मीडिया, ऑनलाइन बैंकिंग, ई-कॉमर्स से लेकर सरकारी योजनाओं तक। लेकिन क्या हम जानते हैं कि हमारा निजी डेटा कहाँ जाता है और कैसे इस्तेमाल होता है? भारत में डेटा प्राइवेसी कानून और जनता की जागरूकता के बीच एक बड़ा अंतर है। यह ब्लॉग इन्हीं मुद्दों पर गहराई से चर्चा करेगा।

1. डेटा प्राइवेसी कानून: भारत की वर्तमान स्थिति
(A) डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट (DPDP), 2023 26
यह कानून व्यक्तिगत डेटा के संग्रह, भंडारण और उपयोग को नियंत्रित करता है।

मुख्य प्रावधान:

कंपनियों को डेटा लीक होने पर 250 करोड़ रुपये तक का जुर्माना।

बच्चों के डेटा की सुरक्षा के लिए माता-पिता की सहमति अनिवार्य।

डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड (DPB) का गठन, जो शिकायतों का निवारण करेगा।

(B) आईटी एक्ट, 2000 और निगरानी प्रावधान 15
धारा 69 के तहत सरकारी एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर डेटा की निगरानी का अधिकार।

चिंता: क्या यह निजता के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन है?

(C) निजता का अधिकार और सुप्रीम कोर्ट का फैसला 3
2017 में पुट्टास्वामी केस में सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया।

लेकिन, यह अधिकार “उचित प्रतिबंधों” के अधीन है, जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा।

2. आम जनता की जागरूकता: कितनी तैयार है हमारी समाज?
(A) जागरूकता की कमी
ज्यादातर लोग नहीं जानते कि उनका डेटा कैसे इस्तेमाल हो रहा है।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (जैसे Facebook, Google) की प्राइवेसी पॉलिसी को पढ़े बिना “सहमति” दे देते हैं 9।

(B) सरकारी और गैर-सरकारी पहल
माईगॉव पोर्टल पर DPDP नियमों पर फीडबैक मांगा गया 10।

डिजिटल साक्षरता अभियान चलाने की जरूरत, जैसे:

कुकीज और ट्रैकिंग को समझना।

“एज-गेटिंग” (बच्चों के डेटा सुरक्षा) के बारे में जानकारी 6।

(C) कंपनियों की भूमिका
Google, Uber जैसी कंपनियाँ अपनी निजता नीतियों को सरल भाषा में समझा रही हैं 911।

लेकिन अभी भी डेटा मैनेजमेंट टूल्स का उपयोग कम है।

3. चुनौतियाँ और समाधान
(A) चुनौतियाँ
कानून और कार्यान्वयन में अंतर – DPDP एक्ट लागू होने के बावजूद डेटा लीक के मामले बढ़ रहे हैं।

साइबर अपराध – फिशिंग, हैकिंग और डेटा ब्रीच के मामले।

टेक्नोलॉजी की तेज रफ्तार – AI और बड़े डेटा के सामने कानून पिछड़ रहा है।

(B) समाधान
✔ शिक्षा और जागरूकता: स्कूलों और कॉलेजों में डिजिटल प्राइवेसी कोर्स शुरू करना।
✔ सरकार-नागरिक सहयोग: डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड तक पहुँच आसान बनाना 6।
✔ कंपनियों की जवाबदेही: डेटा उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई और पारदर्शिता।

4. निष्कर्ष: क्या हम सुरक्षित हैं?
भारत ने डेटा प्राइवेसी कानूनों में प्रगति की है, लेकिन जागरूकता और कार्यान्वयन अभी भी चुनौती है। हर नागरिक को यह समझना होगा कि उसका डेटा उसकी डिजिटल संपत्ति है और उसकी सुरक्षा उसकी जिम्मेदारी भी।

“डेटा सुरक्षा सिर्फ कानून का नहीं, हर व्यक्ति का अधिकार है। जागरूक बनें, सुरक्षित रहें!”

आपकी राय?
क्या आपको लगता है कि भारत का डेटा प्राइवेसी कानून पर्याप्त है? अपने विचार कमेंट में साझा करें!

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